मां किसी औरत का नाम नही है। यह हाड़ मांस का कोई पुतला भी नही है। यह संबंध और संबोधनों की अभिव्यक्ति भर नही है। माँ जीवन का सुखद अहसास है। यह जीवन की माधवी-गजल है। चेतन और अवचेतन मन की मां एक पुकार है। संतान एक पिता का प्रति-उत्पाद भी हो सकती है, पर एक मां के लिए नही। मां के कलेजे की करुण-पुकार के हम करीब रहे हैं। पूत का कपूत होना संभव है और जो हो ही रहा है। पर माता कुमाता नही हो सकती है। आज मातृ-दिवस है। भारत की यह परंपरा ही नही है। यहां की ममता और मातृत्व किसी फूल के गुच्छे से अभिव्यक्त नही होती। यहां मां ‘पिता की पत्नी’ कभी रही नही। किसी सीमा और संबंध के सापेक्ष में मां कभी घटित ही नही होती। साल में एक दिन मां का ? बहुत ही शर्मनाक और दुर्भाग्यपूर्ण।
मां अपने आप में एक सभ्यता और संस्कृति है। एक जीता-जगता प्रेम की पाठशाला और एक संस्थान। मई के हर दूसरे रविवार को एक मां का जन्म होता है। यह एक गहरे संकट का संकेत है। जितने दर्द उतने ही दिवस। यह देश दर्द को भी सिलेब्रेट करता है। इस दिवस पर हम यह कह सकते हैं कि खासकर भारत की माओं पर खतरा है। दिवस इसी ओर इशारा कर रहा है। आज चारों ओर वृद्धाश्रम का खुलना क्या कुछ नही कहता। मां एक एटीएम मशीन और महतारी है। आंखें भींग जा रही हैं मां पर शब्द खर्च करते हुए। एक असीम तत्व को शब्द में बंधना मुश्किल हो रहा है। घर की माता को आश्रम में और गौ माता के लिए संघर्ष। भारत के वृद्धाश्रम को बंद करने का आंदोलन करना चाहिए। जो हिन्दू या मुसलमान अपनी मां को घर से बाहर करे उसका बहिस्कार हो। इससे गौ माता भी बचेगी। कृष्ण यशोदा से जिस अनुपात में प्रेम करता है उसी अनुपात में अपनी गायों और गोपियों से प्रेम करता है। केवल गाय से प्रेम करने वाला ही असली कसाई है। ये गौ सेवक अपनी गाय के थन और योनि के सिवा कुछ नही देखते। बच्चा देना और दूध देने वाली ही गाय इनकी माता है। शेष जो हैं वे केवल पशु हैं। मां के साथ भी यही सलूक है।
भारत माता की जय के बीच देश की मां खामोश हैं । क्या यह सच नही कि जिसके भीतर मातृशक्ति का सम्मान नही वे मातृभूमि के सम्मान नहीं कर सकते ? नई पीढ़ी हमसे सीख रही है। वैसे ही सलूक हमें भी भोगना है। देश में आज मां का आँचल नही है। माँ एक देह हो रही है। इस देहबोध ने कोख का भी बाजार सजाया है। एलजीबीटी बीडीएसएम और अन्य सह-जीवन के खेल में माँ मर रही है। मातृत्व आज स्त्री-स्वतंत्रता के बाधक की तरह है । बाजार को देह चाहिए एक मां नही। बाजार भोग का स्वर्ग निर्मित कर रहा है। स्वर्ग में केवल भोग होता है, सृजन नही। मां होने की भूल ही तो की थी मेनका ने। किस तरह उन्हें स्वर्ग से धकिया दिया गया वह शकुंतला की जन्म-कथा से परिचित होंगें। बाजार की इस अंधी गली में हमारी मां को मेनका होने से बचना होगा। आओ! हम इसका इनकार करें। हरपल हर दिन मां को जीवन का सुखद अहसास बनाएं।