कहां जा रहे हो ये जानेवाले, यह पूछना आज जानलेवा साबित हो सकता है। लोग सदमें में हैं, इधर कुआं उधर खाई। कोरोना से नहीं बल्कि कानून से नाराज़ हैं, कानून मानने वाले देश के नियम और संविधान का सम्मान जितना सर्वहारा करते हैं उतना शायद संप्रभु भी नहीं करते। एक ही देश में दो विधान! देश के आम-आवाम को वर्तमान निजामों पर कोई भरोसा नहीं है, अगर भरोसा होता तो शायद इस तरह लोग नहीं भाग रहे होते?
जिनकी मेहनत पर लॉक डॉउन में लोग मज़े मार रहे हैं, घर में कैद होकर पूरियां तोड़ रहें हैं, आज इनकी सुधि कौन लेगा? जब गांधी ही नहीं रहे तो उनके तावीज़ कहां से याद रहेगा। गांधी ने कहा था कि कुछ भी फैसला करने से पहले यह अवश्य ख्याल में रखना कि इससे पंक्ति में खड़े अंतिम व्यक्ति का हित कितना है।
आज गांधी का यह अंतिम व्यक्ति कोरोना के कारण करुण-कथा का पात्र हो गया है। चारो ओर लोग भाग रहे हैं। गोद में बच्चा, माथे पर पोटली, हाथ में बोतल। कोई ठोर नहीं कोई ठिकाना नहीं। खैरात पाने की स्थिति भी नहीं। सरकार की घोषणाएं कोस्मेटिक ही हैं, जुमले और लफ्फाजी के अलावा और इनके पास कुछ नहीं। भागने वाले लोग जाहिल और विक्षिप्त नहीं हैं। इन्हे वायरस का वाहक मत कहिए। कुछ नहीं दिया तो कम से कम गाली मत दीजिए इन्हे।
यह वायरस इनकी बैलगाड़ी और ठेलागाड़ी से नहीं फैला है। उड़ने वालों ने ही जमीन पर रहने वालों का जीना हराम किया है। एयरपोर्ट पहले क्यों नहीं सील किए गए? एक दिन पहले इनके लिए मुकम्मल इंतजाम क्यों नहीं किए गए। व्यवस्था का यह विषाणु कोरोना से ज्यादा ही मारक है। जितने लोग करोना से नहीं मरेंगे उससे ज्यादा मौतें तो इस अराजकता में हो जाएगी।
देश के किसी भी बस स्टैंड का दृश्य देख लें। कोरोना मीडिया में हम देख रहे हैं कि किस तरह भाजपा मनोज तिवारी जैसा नेता क्रिकेट खेल रहे हैं, शाहनवाज संगीत का आनंद ले रहे हैं। नरेंद्र जी के इन नीरों को बांसुरी बजाने से कौन रोक सकता है। जले पर यह संघी नमक?
कभी स्वयं को इनकी जगह रखकर देखें तब कहीं इनका दर्द समझ पाएंगे। कोरोना फ़्री कमरे और कैमरे और किसी अनहोनी घोषणा का कयास लगाते रहते हमलोग। निबंधित अनुबंधित सरकारी लोग घर बैठकर बकवास के अलावा और क्या कर सकते हैं। सभी लोग मोदी योगी में महात्मा बुद्ध की बहती करुणा देख रहे हैं, गजबे है भाई आपलोग?
दरअसल यह अतिरिक्त आबादी है। जिसे आप सरप्लस- पॉपुलेशन कह सकते हैं। ये जिंदा इसलिए हैं कि मर नहीं रहे हैं। दुनिया की कोई सरकारें इनकी जिम्मेवारी लेना नहीं चाहती। जो कुछ हो भी रहा है वह निगमों की लूट की खुरचन भर है।
हमने इथोपिया को भी देखा और इबोला को भी देखा। इबोला तो कोरोना का मूंहबोला भाई ही है। इबोला ने भी हजारों जिंदगी लूट ली थी। कोरोना भी हजारों जिंदगी लूट ली और आगे भी लूटेगी। हम लाशों को गिनते रहेंगे। अबतक कितने? क्रिकेट और करोना का रोमांच एक जैसा। कितने विकेट की तरह कितने लोग गिरे? मीडिया के पास कैश का रोना अब नहीं है, कोरोना जो है।
भारत के हिन्दुओं ने अपने ही लोगों की छाया से बचते थे। देश के महारों से बचने के लिए मनुवादी-मास्क तो पहले से ही उपलब्ध था। आधी आबादी घूंघट में थीं। वह आज के करोना से बचने का तात्कालिक मनुवादी उपाय था। बुर्का भी घूंघट का भाई ही है। जैनियों ने पहले ही मास्क लगा लिया था।
देश में कास्टिजम का संक्रमण कोरीना से ज्यादा कहरदार रहा। ब्राह्मणवाद जैसी बीमारी पहले भी थीं। उसका वायरस आज भी मौजूद है जेहन और जहां में। कल भी व्यवस्था असंवेदनशील थीं और आज भी है। आज भी स्वानुभूती और सहानुभूति पर संवाद सनातन बना हुआ है। इन गरीब गुरुओं द्वारा फैलाए जाने वाले वायरस से देश की हवेलियां नहीं हिल जाय, सरकार को चिंता इसकी ज्यादा हैं।
कोरोना-राष्ट्रवाद की पालकी कौन ढोएगा, कंधा तो चाहिए न? इसलिए भी इन्हे जिंदा रख लीजिए मेरे रहनुमां? ये सदियों से आपकी सेवा करते रहे हैं और आगे भी करते रहेंगे। ये तो पैदा ही हुए हैं आपके लिए। इन्हे बचा लीजिए हुजूर, आप ही इनके माई बाप हैं।

अल्लाह हू अकबर और भगवान का दरवाजा भी बंद हो चुका है। मंदिर के भगवान भी मास्क लगा चुके हैं। कृष्ण पूतना को मार सकते हैं तो करोना को क्यों नहीं? किसी संक्रमण से बचाने के लिए तम्बू से बाहर निकाल कर सुरक्षित कर दिया गया है। मायावी कोरोना का वध करने की कूवत किसी में नहीं। मुल्ला और महात्मा सभी मास्क में हैं। मंदिर-मस्जिदों ने मजलूमों को बेसहारा छोड़ दिया है। आज पता लग गया कि धर्म स्वयं में एक बीमारी है। कोरोना की सूली पर लटके लोग अब दक्षिणा कहां से लाएंगे?
मेरे गरीब नवाजो! तुम तो पहले से ही मरे थे, मरते आ रहे हो, थोड़ा और मर लो, पर इस बाबा, बाजार और व्यवस्था को तो समझ लो। तुम्हारा इम्यून-सिस्टम तो तुम्हारी क्रय-क्षमता में है। इसके बिना तुम कुछ नही हो, बोनाफाइड-सिटीजन होने के लिए तुम्हारा बाजार में टिकना जरूरी है। टका धर्म: टका कर्म:, कर्म टका ही परम पदम, यस्य गृहे टका नास्ति, हाय टका टक टकायते.. बिना पैसा का मुलुर-मुलूर ताकते रहो?
कोरोना से सावधान रहना जरूरी है तभी कोई क्रांति की बात सोचना। व्यवस्था से विद्रोह का वक्त अभी नहीं है। तत्काल मोदी है तो मुमकिन है का मंत्रजाप करना ही तुम्हारे लिए उचित है। बच गए तो मोदी को अपनी मोहब्बत देना। काठ की हांडी तीबारा भी चढ़ा देना। बस अभी इतना ही।