रवि सैनी
सरकार की नीति चाहे जो भी हो लेकिन जब भूखे को खाना और बेरोजगारों को रोजगार नहीं मिलता तो वे फिर हिंसक हो जाते हैं और किसी की चिंता नहीं करते। इसके लिए हमारा सिस्टम तो दोषी है ही लेकिन हमारा समाज भी कम दोषी नहीं है। देश की बढ़ती आवादी बहुत सारी समस्यायों की जड़ है। बढ़ती जनसंख्या ना सिर्फ विकास की गति को बाधित करती है वल्कि इंसानी जीवन को भी तबाह और बर्बाद करती है। यह बात और है की पिछले एक दशक में बढ़ती आवादी की गति पहले की तुलना में कम हुयी है लेकिन इसपर नियंत्रण करना बेहद जरुरी है।
सरकार की नीति चाहे जो भी हो लेकिन जब भूखे को खाना और बेरोजगारों को रोजगार नहीं मिलता तो वे फिर हिंसक हो जाते हैं और किसी की चिंता नहीं करते। इसके लिए हमारा सिस्टम तो दोषी है ही लेकिन हमारा समाज भी कम दोषी नहीं है। देश की बढ़ती आवादी बहुत सारी समस्यायों की जड़ है। बढ़ती जनसंख्या ना सिर्फ विकास की गति को बाधित करती है वल्कि इंसानी जीवन को भी तबाह और बर्बाद करती है। यह बात और है की पिछले एक दशक में बढ़ती आवादी की गति पहले की तुलना में कम हुयी है लेकिन इसपर नियंत्रण करना बेहद जरुरी है।
जब तक हम जनसँख्या को नियंत्रित करने की नहीं सोचेंगे, हिंसा को रोकने के प्रयास उतने ही कठिन होते जायेंगे क्योंकि लोग जब रोजगार या व्यवसाय ठीक से नहीं कर पाएंगे तो सामाजिक हिंसा को कौन रोक सकता है ? जब वे भूखे होंगे तो क्या करेंगे? वे चोरी करेंगे और एक दूसरे को मारेंगे | जब वो खुद मरने की हालत में पहुँच जायेंगे तो वे क्यों फ़िक्र करेंगे किसी और के बारे में भला करने या सोचने की ? अपने खुद के अस्तित्व के लिए इंसान कुछ भी करेगा।
आज जब हम देश का 69 वां गणतंत्र दिवस मना रहे हैं। लेकिन आज भी हम ऐसे केंद्रीय नेतृत्व से वंचित है जो हमें लाचारी और ज़िल्लत से निकाल कर स्वाभिमान के साथ जीने के मार्ग पर ले जा सके। आज भी वोट बैंक की राजनीती पूर्ण रूप से विकराल बनती जा रही है और अमीर और भी अमीर होता जा रहा है जबकि गरीब और गरीब होता जा रहा है। अमीरी और गरीबी की इतनी बड़ी खाई आखिर बनी कैसे ? कौन है जिम्मेदार ? फिर सवाल यह भी है कि कब तक सरकार अमीरों पर कर लगा कर गरीबों को खिलाती या बांटती रहेगी? आय के अनेकोंनेक अवसरों को न खोजकर केवल अतिरिक्त वाह्य कर्जे के ऊपर निर्भर रहने की मज़बूरी एक दिन भारत को एकदम कंगाली के हालत पर पहुँचाने में अधिक देर नहीं लगाएगी।
चीन में एक ही राजनीतिक दल का वर्चस्व होने के कारण वहां दमनकारी नीतियां कामयाब हो सकती हैं। क्या भारत को भी ऐसा ही नेतृत्व तो पसंद नहीं आएगा या यह एक मज़बूरी बस लागू करना पड जायेगा ? क्या अब ऐसा समय नहीं आ गया है की हम सबको जागरूक होकर पूरे देश को जागृत करने की आवश्यकता है ? क्या इसके लिए हम कल तक इंतज़ार कर सकते हैं ? लगता है हमें एक सुर से देश में एक मुहीम चलानी चाहिए कि – एक देश एक कानून होना चाहिए व् इसके लिए जितने भी सख्त कदम उठाकर सरकार पर दबाव डालना चाहिए | आओ आज इस गणतंत्र दिवस पर हम एक प्रण ले की देश सर्वोपरि है और अगर हम आज नहीं जागे तो आने वाला भविष्य अंधकारमय होगा, इसमें कोई भी संशय नहीं है।
आज जब हम देश का 69 वां गणतंत्र दिवस मना रहे हैं। लेकिन आज भी हम ऐसे केंद्रीय नेतृत्व से वंचित है जो हमें लाचारी और ज़िल्लत से निकाल कर स्वाभिमान के साथ जीने के मार्ग पर ले जा सके। आज भी वोट बैंक की राजनीती पूर्ण रूप से विकराल बनती जा रही है और अमीर और भी अमीर होता जा रहा है जबकि गरीब और गरीब होता जा रहा है। अमीरी और गरीबी की इतनी बड़ी खाई आखिर बनी कैसे ? कौन है जिम्मेदार ? फिर सवाल यह भी है कि कब तक सरकार अमीरों पर कर लगा कर गरीबों को खिलाती या बांटती रहेगी? आय के अनेकोंनेक अवसरों को न खोजकर केवल अतिरिक्त वाह्य कर्जे के ऊपर निर्भर रहने की मज़बूरी एक दिन भारत को एकदम कंगाली के हालत पर पहुँचाने में अधिक देर नहीं लगाएगी।
चीन में एक ही राजनीतिक दल का वर्चस्व होने के कारण वहां दमनकारी नीतियां कामयाब हो सकती हैं। क्या भारत को भी ऐसा ही नेतृत्व तो पसंद नहीं आएगा या यह एक मज़बूरी बस लागू करना पड जायेगा ? क्या अब ऐसा समय नहीं आ गया है की हम सबको जागरूक होकर पूरे देश को जागृत करने की आवश्यकता है ? क्या इसके लिए हम कल तक इंतज़ार कर सकते हैं ? लगता है हमें एक सुर से देश में एक मुहीम चलानी चाहिए कि – एक देश एक कानून होना चाहिए व् इसके लिए जितने भी सख्त कदम उठाकर सरकार पर दबाव डालना चाहिए | आओ आज इस गणतंत्र दिवस पर हम एक प्रण ले की देश सर्वोपरि है और अगर हम आज नहीं जागे तो आने वाला भविष्य अंधकारमय होगा, इसमें कोई भी संशय नहीं है।