तख्त-ए-ताज के लिए देश के दलवाले, दालानवाले और दलपति सभी तारिकाओं को निहारने और तारने में लगे हैं। इन तारिकाओं का काम है विपक्ष को ताड़ना । ये सब ताड़न की ही अधिकारिणी हैं। बड़े परदे और छोटे परदे के कलाकार भी इस चुनावी-क्रांति में कूद गए हैं । छोटे परदे की एक से बढकर एक सेक्सी डायन हैं, जिनकी सत्ता पर नज़र है । सियासी लोगों की भी इन पर नज़र है । महंगाई अब डायन कहाँ ? डायन ही महंगी हो गयी है । डायन अब इम्पोर्ट हो रही हैं । इन दलों का अभी एक ही तराना है – आ जा मेरी गाड़ी में बैठ जा .. संसदीय व्यवस्था में सिलेब्रेशन का यह नया दौर है ! देश में ख़ूबसूरती आये न आये, पर संसद अवश्य ही खूबसूरत हो जाय ?
रुपहले परदों से निकल रुपहली राजनीति की ओर आना वास्तव में यह एक नया दौर है । अब किसी सिद्धांत और सिद्धांतकार में किसी को कोई रस नही है । लोहिया की राजनीति लियोन तक पहुँच गई है। उनकी सप्त-क्रांति, सेक्स-क्रांति में बदल चुकी है । दल के लोग नयी पीढी के मिजाज को भांप लिए हैं । नयी पीढी की इस आकांक्षा पर खड़े उतरने की सभी दलों में होड़ लगी है । वैसे हमें किसी अभिनेता का नेता होना बुरा नही लगता । अभिनय से अच्छा इन्हें देश का नेतृत्व करना अच्छा लगता है, तो इसका स्वागत करना चाहिए ।
पर किसी नेता का अभिनेता होना विल्कुल ही अनुचित कर्म है । नेता लोग जिस जगह पर जाकर अभिनय कर रहे हैं, यह जगह अभिनय की जगह नहीं है । डिस्प्ले नहीं डिलेवरी ? संसद को पोलिटिकल-थियेटर न बना दिया जाय, इसकी चिंता है । बुनियादी सवालों से लड़ने-भिड़ने का महाकाल है, यह मनोरंजन का वक्त नहीं है । अभिनेता का नेता होना अच्छा है, पर नेता का अभिनेता होना, देश, काल, राजनीति और जनभावना के साथ अन्याय है ?
अभिनेता के बदले जब अपराधी भी राजनीति में आ रहे थे तो मैंने उन बीहड़ के लोगों का भी राजनीति में आने का स्वागत किया था । बीहड़ छोड़कर कोई विधानसभा में बैठना चाहता था, तो इसमें बुरा क्या था ? कम से कम इससे यह तो सिद्ध होता ही है कि ये अपराधी सभ्य या सभेय होने के महत्व को समझते हैं ? बीहड़ से कोई आ रहा है तो उसका हमें अवश्य स्वागत करना चाहिए, पर धिक्कार तो उनका है जो विधानसभा छोड़कर बीहड़ पहुंच रहे हैं, या फिर विधानसभा को ही बीहड़ बना दे रहे हैं ?
देश चुनावी-ताप में तपने लगा है । आरोपों प्रत्यारोपों की आंधी बह रही है । अब तक की सारी मर्यादायें टूट चुकी हैं। यह पूरी नीचता का चुनाव है । देश ,कौन सबसे कम नीच है, का चुनाव कर रहा है। कौन धीमा जहर है? किस जहर से धीमी मौत होगी? देश को अभी इसके चुनाव की चिंता है ? इस चुनाव में किसी दल से बेहतरी की अपेक्षा करना, एक मुर्खता ही है । यह सियासी-सर्कस है। इस शो के लिए खूबसूरत जिस्म की जरुरत है, किसी खूबसूरत जजबात की नहीं ।
सारे वुड, राजनीति के होलोवूड में शामिल हो रहे हैं ? होलो यानी ढोल ? सपना से शिल्पा तक को आफरों की ढेर लगी है । सारे नचनिया गवैया बिजी हो गए हैं । किसी भी दल में कार्यकर्ताओं का जीवन बहुत ही बदतर है । आलाकमान से टिकट पाना तो दूर, इनसे बात करना भी कार्यकर्ताओं के लिए मुश्किल हो गया है । एक-एक अभिनेत्रियों को दो-दो पार्टियों ने टिकट दिया ? एक साथ दो जगह से नही, बल्कि दो दलों से एक साथ चुनाव लड़ना, कितनी बड़ी जीत है इस जनतंत्र की ?
कितने बड़े दिल वाले हैं हमारे देश के दल ? दल में दिल्लगी का आलम ! हा हा ! हम इस जमाने के लीडर हैं । हा हा ! एक टिकट तू हमसे उधार लेई ले, बदले में यूपी बिहार देइ दो …ओमपुरी होती भारत की खुरदरी राजनीति के लिए चिकनी चमेलियों का होना नितांत जरूरी है। पहले कांग्रेस भी सपना को देख रही थी कि यह हरियाणवी चौधरी इनके टिकट पर चुनाव लड़ेगी ?
मथुरा के ड्रीम-गर्ल का क्लासिकल-डांस मथुरा के नई पीढ़ी को पसंद नही । इस पीढ़ी को कमर बरपाती सपना का डांस चाहिए था, बस और कुछ नही । बेवफा सपना ? भाजपा के तिवारी सपना को फुसला कर अपने घर ले गए। मनोज तिवारी ने सपना को समझाया कि कहाँ वह कांग्रेस में जा रही है? यहाँ फेंकने का माहौल है । कोई जुमला फेकेगा, तुम अपनी कमर ही फेंकना । मनोज ने मोदी का ‘सपना’ पूरा किया ।
भाजपा शत्रु को मित्र नही बना पाई । बावजूद भाजपा की आंखों में केंट का शुद्ध पानी मौजूद है । अपने ड्रीम-गर्ल का साथ भाजपा अभी भी रिश्ता निभा रही है । कांग्रेस भी भाजपा की तरह कोई ‘तुलसी’ दल होकर नही रहना चाहती है। उर्वशी हो या उर्मिला सबको हथियाकर कांग्रेस छमक-छल्लो हो जा रही है । कौन कहता है कि कांग्रेस वृद्ध हो गई है ?
कांग्रेस का नेतृत्व नई पौध के हाथ में है । कम से कम भाजपा नेतृत्व से तो कांग्रेस अवश्य ही तरोताजा दिखती है । पिछले चुनाव में कांग्रेस को वृद्धा घोषित कर जीते-जी मोदी कांग्रेस को श्रंद्धाजलि दे रहे थे । जबाव में प्रियंका ने कहा भी था कि क्या मैं बूढी दिखती हूँ ?
भारतीय संसदीय जनतंत्र में अभी कांग्रेस और भाजपा आर्केस्ट्रा-पार्टी की भूमिका में है । मोदी और राहुल इन वृंदवादक समूह के बेहतरीन उद्घोषक हैं । तद्भवी कांग्रेस इसे कौवाली कहे या तत्समी भाजपा इसे काव्यवली कहे, तमाशा केवल चुनावरंजन का ही है । छोटे दलों के पास कोई सपना नहीं है । केवल कमला बिमला ही है । इनके पास ढोलक और डफली है । बड़ी आर्केस्ट्रा के सामने इनकी चमक फ़ीकी पड़ रही है । देश भटक चुका है । प्राथमिकता और प्रतिबद्धता दिशाहीन है । वर्गीय राजनीति के अपने खेल हैं । हम पोपुलिज्म के शिकार हो रहे हैं ।