लव पर फसाद जारी है। बात यहाँ फसाद की नहीं, लव-जेहाद की हो रही है? भाजपा नीत सभी सरकारें उताबली हो गयी हैं कि किस तरह अपने मतलब के हिंदुत्व को लव-जिहादियों से बचाया जाय? इनके यानी संघ परिवार और सरकार के हिंदुत्व को लव-जिहाद से बड़ा ख़तरा पैदा हो गया है?
उत्तरप्रदेश की सन्यासी-सरकार ने क़ानून भी बना लिया है। आदित्यराज और शिवराज सभी इस लव से परेशान हैं। धर्मध्वज और राष्ट्रध्वज का एक साथ आरोहण और धर्मदंड और राजदंड का एक साथ आरोपण? यह कौन सा समास है, यह मुझे भी पहचानना है और आप भी पहचानें।
‘अंतर’ एक सनातन शब्द है। यह आज भी अर्थपूर्ण बना हुआ है। अर्थ खोते शब्द-समूह का यह शब्द अबतक हिस्सा नहीं बना है। यह लगातार हमारा पीछा कर रहा है। हिन्दू-समाज की अपनी ही आंतरिक विसंगतियां हैं। यहाँ अंतर्जातीय-लव से जाति, अंतर्धार्मिक-लव से धर्म और अंतर्देशीय-लव से यह राष्ट्र खतरे में रहा है। समय संवेदनशील हो गया है। पहरेदारों की भीड़ बढ़ रही है.चाकचौंबद चौकसी? लव के लिए खुले में सोच? यह सोचना भी अब संभव नहीं। न इश्क करेंगें, न ही करने देंगे।
दिलों पर दलों का पहरा! दिल कैसे धड़के, किसके लिए धड़के और कहाँ धड़के यह दल का मामला हो गया है का नहीं? चाँद मोहम्मद और चौदहवीं का चाँद? दिल रधिया के पास है तो रजिया के पास भी है। रधिया की तरह रजिया भी हिन्दू लड़कों के लिए पागलपन दिखाती तो बात बराबर पर छूटती। लेकिन मामला एकतरफा है। केवल मुस्लिम दामाद ही क्यों? हिन्दू दामाद क्यों नहीं? दामादों का यह कैसा देश! दामादों का देश सही से नहीं बन पा रहा है इसलिए थोड़ी शंका मुझे भी होती है। देश का यह अंतहीन भटकाव है। भाजपा बिस्तर गिन रही है और नीतीश की पार्टी बच्चा गिनती कर रही है और इधर देश के किसान गोलियां की गिनती कर रहे हैं। देश की ‘ममता’रो रही है। हर तरफ जिहाद ही जिहाद है।
सुल्ताना और शबाना भी लव लिए सीता और पार्वती बनती नजर आती तो शायद यह सियासी जिहाद न हो रहा होता। वैसे यह सब जुल्म सर्वहारा के लिए है जो रोजी और रोटी के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं। सुलगते सवालों से बचने का राजकीय-चरित्र ऐसा ही होता है। फर्जी मुद्दे और फर्जी संघर्षों में उलझाए रखना यही तो राजनीति है?
बड़े घराने के लोग कल भी मुस्लिमों को दामाद बना रहे थे और आज भी बना रहे हैं। मुगलों के अंतः पुर में सत्ता-सुख लिए बिस्तर साझा करने का इतिहास बहुत बड़ा है, उसे यहाँ दुहराना उचित नहीं। वहाँ लव-जिहाद का कोई प्रश्न नहीं था? इतिहास के उस मीणा-बाजार में भी हमें थोड़ा घूमना चाहिए?
हिन्दू बहु-बेटी क्या, किसी का भी बहला-फुसलाकर शोषण करना अपराध है। रजामंदी की बात तो अक्लमंद लोग करते हैं जैसे शाहरुख़ खान, बीजेपी के शाहनवाज हुसैन? न जाने कितने मुस्लिम दामाद? इन दामादों का नया देश कौन बना रहा है? वर्गीय-चेहरा पहचानना जरूरी है।
यह सच है कि सनातन जीवन मूल्यों की रक्षा की जिम्मेवारी आज केवल सर्वहारा और श्रमणों के पास है और यह कल भी था। आज भी यह गाय और गंगा केवल बोलता ही नहीं है बल्कि जीता भी है। इनके पास वाचन का हिंदुत्व नहीं, कर्मणा हिंदुत्व ही जिन्दा है? लव-जिहाद का केंद्र कहाँ है जहाँ से यह लावा लगातार फुट रहा है? यह राज, शिवराज और आदित्यराज सबको पता है। लव-जिहाद देश के प्राथमिक प्रश्न नहीं हैं।
इस देश में मुस्लिम दामादों की भीड़ किसी दलित पिछड़ों ने नहीं बढ़ायी। हिंदुत्व को आज खतरा मुसलमानों से कम मार्किट से ज्यादा है। मुग़ल राज में जब लव-जिहाद नहीं हो पाया तो क्या मोदीराज में किसी मियाँ की हिम्मत है कि वह लव-जिहाद कर ले? सडक-छापों की भीड़ बढ़ रही है। यह राजनिर्मित अराजकता है।
सरकार का ऑपरेशन मजनू से मन नहीं भरा। इससे सरकार मोहब्बत का दुश्मन साबित हो रही थी। इसमें मियां मुल्ला और मस्जिद को घसीटना मुश्किल था। दूसरी तरफ तमाम विफलता की होनी कहानियां थी। लव ज्यादा जरूरी था। वैसे यह मुद्दा भी कारगर नहीं होने वाला है। किसान आंदोलन इस मुद्दा को निगल गया है।
जारी अध्यादेश में प्रिया-कशिश,एकता हत्याकांड और मेघालय में हुई युवती के बलात्कार जैसी दर्जन भर घटनाओं को कोट किया गया है.इस तरह योगी ने प्रेमरोगी खासकर मुस्लिम प्रेमरोगियों के लिए अध्यादेश के जरिये मुक्कमल ईलाज की व्यवस्था कर दी है। सरकार की नजर में इस अध्यादेश के जरिये भयाक्रांत हिंदुत्व को निर्भयता मिल गयी दिखती है? सियासत की ऐसी रुग्ण दृष्टि कभी नहीं देखी गयी। कानी बिल्ली घर ही शिकार। भाजपा की स्थिति कुछ ऐसी ही दिखती है।
कानुपर और मेरठ की घटनाओं का उल्लेख अध्यादेश के ड्राफ्ट में किया गया है। प्रिया-कशिश हत्याकांड का आरोपी गाजियाबाद लोनी का शमशाद,अमित नाम से फेसबुक पर कशिश से दोस्ती की और जाल में फंसाया और मां- बेटी को साथ रखा। जब बाद में दोनों को पता चला कि वह अमित नहीं शमशाद है तो प्रिया-कशिश की हत्या हो गयी।
इस ड्राफ्ट में अनेकों कहानियों का जिक्र है जिसमें लव-जिहाद के बहाने धर्मांतरण की चर्चा है.जिहाद का अर्थ है धर्म के लिए संघर्ष और युद्ध करना। अगर इन फूहड़ कृत्यों से ही इस्लाम ज़िंदा है तो ऐसे इस्लाम को ख़त्म हो जाना चाहिए और अगर कुछ उचक्कों और अपराधियों के आपराधिक घटनाओं से हिंदुत्व मरने लग जाय, तो ऐसे हिंदुत्व को भी मर ही जाना चाहिए।
क्या आज हिन्दू धर्म को लव-जेहाद से खतरा पैदा हो गया है? हिंदुत्व की विराट परम्परा को कोई सड़कछाप मजनूँ मियाँ खतरे में डाल दे, यह समझ से परे है। हो सकता है और है भी कि कुछ सड़क छाप लफंगें मुस्लिम युवक प्रेम के नाम पर धोखा दिए हों, ठगी और अपराध किये हों, और इससे हिंदुत्व खतरे में आ जाय, तो मामला बहुत ही हास्यास्पद है। सदियों-सदियों तक जिस हिन्दू समाज ने तलवार का धार देखा, जुल्मों-सितम देखा और जिसकी हस्ती मिटाई नही जा सकी, उसे क्या ये टुच्चे लोग मिटा देंगें?
अपराध केवल अपराध है। वह हिन्दू और मुसलमान नहीं होता। धोखा-धड़ी, ठगी और बेवफाई इधर भी है और उधर भी है और किधर नहीं है? रजिया और रधिया का दर्द एक है। मुस्लिम लड़कियों भी कम तबाह नहीं है मुस्लिम लड़कों से? हिन्दू लड़के भी गीता की कसम खाकर मुहब्बत शुरू नहीं करते? ये तो पूरी गीताश्री को ही निगल जाते हैं। दलित लड़की अगर किसी सवर्ण से इश्क कर ले तो खतरा? मर्दों की दुनिया से बचती हुई समलैंगिक सगाई कर ले तो खतरा, मॉल जाए तो खतरा, मस्जिद और मंदिर जाय तो खतरा? दिल को किस दरिया में फेंक दे लोग। दिल्लगी के बदले क्या दलग्गी किया जाय?
युद्धरत समाज के लिए प्रेम एक बाधा है। जो प्रेम करेगा वह युद्ध या जेहाद नहीं कर सकता.प्रेम के नाम पर जो हो रहा है वह धोखा है। प्रेम शक्ति की तलाश करता है। दुर्बल व्यक्ति जिनके पास अर्पण तर्पण और समर्पण की तैयारी नहीं किसी से लव कैसे कर सकता है। कुंठित पीढ़ी की यह कालिमा है की शोकांतिका है। प्रेम पूर्णता की ओर ले जाता है। पूर्णमिदं को पोर्नमिदं मत बनाओ।
लड़कियां चाहे हिन्दू हो या मुसलमान इस तरह के प्रेम से पहले से सावधान रहें तो बेहतर है। प्रेम आज जो करे वह देह शुरू होकर देह पर समाप्त होता है। ये सारे खेल दैहिक ताप के विसर्जन और उत्तेजना के खेल हैं। जानकर भी जाहिल होना और किसी जिहाद को मौका देना, एक आत्मघाती कदम है।