ऋतु कृष्णा चटर्जी | बहुत से पाप धुल गए, 5 मई 2017 निर्भया पीड़ाकाण्ड का यह ऐतिहासिक इंसाफ सबकी स्मृतियों में जड़ रहेगा। किसी के भी जीवन-मृत्यु का निर्णय कोई नही कर सकता और यह सभी पर लागू होती है, जो भी लिया जाएगा उसका मूल्य चुकाना पड़ेगा। यह बात गांठ बांधनी पड़ेगी, धन लिया धन से ही चुकाना होगा और तन लिया तो तन से ही उधार चुकाया जाएगा। इंसाफ के मंदिर में काले रंग के आवरण ओढेÞ-घूमते शनि प्रतिनिधियों ने अंतत: अपना कर्म-धर्म निभाते हुए सिद्ध कर दिया कि किए गए एक-एक कर्म का हिसाब रखकर ही आपके इहलोक-परलोक का निर्णय किया जाएगा। पछतावा किसी काम का नहीं होता, भले ही पछतावे अथवा भय से कितने ही राम सिंह जेल में आत्महत्या कर लें।
कितनी वेदना, कितना कष्ट, जीवन जीने की इतनी छटपटाहट, किन्तु सब बेकार, शरीर ऊपर से छलनी हो तो घाव भरे। यदि शरीर भीतर से नोंचा गया हो तो भला कैसे बहता रक्त रूके? बलात्कार के सैंकड़ों हृदयविदारक मामले देखे हैं, किन्तु किसी नाबालिग द्वारा ऐसी नृशंसता का नग्न नृत्य प्रथम बार देखा। तत्कालीन परिस्थितियों में उसे तीन वर्ष की जेल फिर सुधार गृह में रखने का निर्णय ठीक था किन्तु इतने वर्षों में उसके भीतर का बलात्कारी पिशाच अब बालक से युवा नहीं हो गया क्या? एक बार मुक्त हो जाने पर भय कुछ कम भी हुआ होगा और पुन: कुछ करके बचने की लालसा भी जाग गई होगी। निर्भया काण्ड में चार को फांसी देकर सुप्रीम कोर्ट ने कार्य पूर्ण समझा या फिर न्यायालय इस नाबालिग से बालिग रूप में आए नए बलात्कारी को सजा देने के पहले दूसरी निर्भया का बलिदान देखना चाहती है? उम्र कै़द देकर इसे भी कैद में ही रखा जाए जिससे समाज में व्याप्त निकृष्ट तत्वों को एक संदेश यह भी जाए कि अपराध और अपराधी दोनों का आजीवन गठजोड़ हो जाता है। अपराध एक बार किया जाए या बार-बार सजा बस एक ही बार दी जाएगी जो सारे जीवन के पन्नों को एक साथ बांध देगी, जिससे फिर कुछ नया न लिखा जा सके।
प्राचीन धारणा है कि मृत्यु के बाद केवल कर्म ही साथ जाते हैं, यदि ऐसा है तो मृत्यु भी कर्माें से मुक्ति नहीं देगी। जेल ऐसा स्थान है जहां जाकर केवल एक ही वाक्य आत्मा को सालता रहता है कि मैंने ऐसा क्यूं किया? सामान्यत: बाहर की दुनिया में ऐसा चिंतन मनन करने का अवसर नहीं रहता और अवसर मिल भी जाए तो समय नही रहता। ऐसे ही व्यक्तियों के लिए आत्ममंथन करने का स्थान है जेल। इंसाफ के मंदिर में भी इन दिनों स्वच्छता आंदोलन छेड़ दिया गया है। निर्णायक कुर्सियों पर जमे अपनी शक्ति के दुरपयोग के खेल में शनि उपासना भूल कर लक्ष्मी प्रसाद जमा करने में व्यस्त हो चले थे, उनकी स्मृतियों पर पड़ी धूल और जालों को हटाकर उन्हें स्मरण कराया जा रहा है कि वे जिस स्थान पर बैठे हैं उसकी गरिमा क्या है? न्याय व्यवस्था को आहत करने वाले उन सभी भीतरी और बाहरी लोगों को सुप्रीम कोर्ट का निर्णय यह स्पष्ट कर देगा कि न्याय प्रणाली सर्वोपरि है।