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भाजपा-कांग्रेस के धर्मयुद्ध में राजनीतिक अखाड़ा बनती अयोध्या

Swaraj Khabar by Swaraj Khabar
June 1, 2017
in Breaking News, E-Paper News, Featured, Uttar Pradesh, खबर, भारत, राजनीति, राज्य की खबरें
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भाजपा-कांग्रेस के धर्मयुद्ध में राजनीतिक अखाड़ा बनती अयोध्या
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रितेश सिन्हा, स्वराज ब्यूरो |गौ के मुद्दे पर कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा केरल कांग्रेस पर की गई कार्रवाही से भाजपा खेमे में खलबली की झलक दिखाई दे रही है। आनन-फानन में भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व की शह पर मनोज तिवारी की दिल्ली भाजपा के निर्देश पर भारतीय युवा मोर्चा को प्रदर्शन करने के लिए बाध्य होना पड़ा। बौखलाई भाजपा ने जंतर-मंतर की बजाए लुटियंस जोन के अतिसुरक्षित क्षेत्र में स्थित कांग्रेस मुख्यालय पर रोष प्रदर्शन किया। मुश्किल से 200 कदम की दूरी पर इस प्रदर्शन की शुरूआत हुई जिसमें पुलिसकर्मियों को शायद निर्देश दिए गए थे कि प्रदर्शनकारियों का रोका न जाए। कांग्रेस प्रवक्ता अजय कुमार भी मानते हैं कि जिस प्रकार गुंडा संस्कृति का परिचय दिया गया है, वो न सिर्फ शर्मनाक है, बल्कि केंद्र सरकार और दिल्ली पुलिस के संरक्षण के बिना इस प्रकार की घटना को अंजाम नहीं दिया जा सकता।
योगी द्वारा अयोध्या कूच और विभिन्न धार्मिक स्थलों की सुध ले रहे और मोदी से इतर अपनी अलग पहचान बनाने की दृष्टि से अहम कही जा सकती है। यूपी के सीएम के योगी का यह दौरा तब हुआ जब लखनऊ की विशेष अदालत ने एक दिन पूर्व बाबरी मस्जिद विध्वंश मामले में भाजपा के शीर्ष नेताओं समेत 12 अभियुक्तों पर आपराधिक मामले चलाने का आदेश दिया। योगी से मोदी बनने की फिराक में अतिउत्साही मुख्यमंत्री अयोध्या को धर्मयुद्ध बनाकर नया अखाड़ा बनाने की फिराक में जुट गए हैं, मगर राहुल के हिन्दुत्व लाइन लेने के बाद यह राजनीतिक लड़ाई आसान नहीं रहने वाली।
राहुल की कोर टीम में बहुसंख्यक के साथ-साथ अल्पसंख्यक बुद्धिजीवियों की अच्छी-खासी जमात है। वे भी कांग्रेस उपाध्यक्ष की आस्था के मुद्दे पर टकराने की रणनीति को लेकर गहन मंथन में जुटे हैं। राहुल ने अपने एजेंडे में हिन्दुत्व की लाइन को भी शामिल किया है। दो राष्ट्र निर्माण यानी टू नेशन थ्योरी के तहत जब मुस्लिम राष्ट्र बना, तब अल्पसंख्यकों की बड़ी आबादी हिन्दुस्तान में बस गई। उस दौरान आरएसएस पाकिस्तान से आए हिन्दू शरणार्थियों को संगठित करने में जुटी थी। मगर कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने गुजरात के सोमनाथ मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा व पुर्नरूद्धार कर यह संदेश देने में कामयाब रही कि हम सेकुलर हैं, मगर हिन्दुओं की हितों के लिए पार्टी हमेशा काम करती रहेगी। हिन्दू नीति की अनदेखी नहीं होगी। इसी रिफार्म के तहत हिन्दू कोड बिल लाया गया। इंदिरा गांधी ने भी इसी हिन्दुत्व के एजेंडे को आगे बढ़ाया। उनका पहला कार्यकाल इंडिकेट-सिंडिकेट की लड़ाई में बीता। दूसरे कार्यकाल में जब काम शुरू किया तब भी विपक्ष के तीखे हमलों के बीच आपातकाल लगाना पड़ा। मुस्लिम आबादी को नियंत्रित करने के लिए नसबंदी को हिन्दुत्व एजेंडे से जोड़कर देखा जा सकता है। यह भी बहुसंख्यक समाज की हितों को ध्यान में रखकर लिया गया निर्णय था।
राजीव गांधी ने भी आस्था के मामले में एक कदम जाते हुए मंदिर का ताला तक खुलवा दिया। कांग्रेस के पुराने लोगों का मानना है कि अगर राजीव दोबारा आए होते तो अयोध्या में भव्य राममंदिर का निर्माण उसी समय हो गया होता। मगर इसके लिए बाबरी मस्जिद के ढांचे को गिराया नहीं जाता, बल्कि बगैर इसको नुकसान पहुंचाए ही मंदिरा का निर्माण कर लिया जाता। हर बड़े अवसर पर माथे पर लाल टीका लगाने वाले राजीव हिन्दुओं की आस्था के प्रति बड़े संवेदनशील रहे। राहुल भी अब इसी हिन्दुत्व के लाइन पर चल चुके हैं। चुनाव दर चुनाव कांग्रेस को मिलती हार की समीक्षा के दौरान राहुल ने पाया कि संगठन के कुछ लोगों के स्वहित के मद्देनजर अल्पसंख्यकों के तुष्टिकरण, मुस्लिम समाज के लिए अनेकों कल्याणकारी योजनाओं के बावजूद, संगठन में बड़े-बड़े पद पर बिठाने के बाद भी वे मुस्लिम मतों को अपने पक्ष में करने में नाकामयाब साबित हुए।
राहुल समझ चुके हैं कि जब तक बहुसंख्यकों का साथ नहीं मिलेगा, तब तक अल्पसंख्यक उनके साथ नहीं आएंगे। उनकी सभाओं में भीड़ तो आती है, मगर कांग्रेस के कमजोर उम्मीदवार को देखते हुए और भाजपा के उम्मीदवार को हराने के लिए दूसरी ताकतों के साथ हो लेती है। मुस्लिम तुष्टिकरण से नाराज बहुसंख्यक तो उनके हाथ से निकला हुआ है, मगर अल्पसंख्यक भी साथ छोड़ देते हैं। कांग्रेस उपाध्यक्ष ने पार्टी की चुनावों के हार की समीक्षा के लिए एक अल्पसंख्यक नेता ए.के. एंटोनी की अध्यक्षता में एक कमिटी का गठन किया था, जिसकी पार्टी के अल्पसंख्यकों और जनाधारविहीन नेताओं द्वारा अनदेखी किए जाने से पार्टी रसातल में चली गई।
देखा जाए तो कांग्रेस में दो प्रकार के नेताओं का प्रभाव है। एक वो हैं जो सत्ता में पार्टी को बने देखना चाहते हैं। दूसरी तरफ ऐसे लोग हैं जो संगठन में अपनी सत्ता बनाए रखना चाहते हैं। ऐसे राजनीतिक सलाहकार से राहुल ने दूरी बनाने की ठान ली है। कांग्रेस के विश्वस्त सूत्रों की मानें तो 2019 की लोकसभा चुनावों के लिए मोदी-योगी की मंदिर रणनीति, इस मामले को गर्माकर वोटों का धु्रवीकरण करना है, मगर अब राहुल के हिन्दुत्व लाइन लेने से मामला बेहद रोचक बन चुका है। अयोध्या में ही अगर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुरूप राममंदिर का शिलान्यास या भव्य मंदिर बनाने की कोशिश की जाती है तो हो सकता है कि राहुल भी अपने दल-बल के साथ मंदिर परिसर में कारसेवा करने के लिए उतर जाएं। मनरेगा यूपीए सरकार की सबसे सफल योजनाओं में शुमार की जाती है। राहुल ने इस योजना को सफल बनाने और युवाओं को इस योजना से जोड़ने और प्रेरित करने के लिए सिर पर मिट्टी से भरा टोकरा ढो चुके हैं। हो सकता है कि उसी प्रकार कारासेवा के जरिए राममंदिर के निर्माण में ईंट उठाकर आस्था का परिचय दे सकते हैं। अगर ऐसा होता है तो भाजपा को इसकी काट ढूंढने में मुश्किलें पेश आ सकती हैं।
कांग्रेस नेताओं का मानना है कि मंदिर केवल भाजपा की जागीर नहीं है। आस्था के मामले में राहुल एक समय केदारनाथ की यात्रा और केरल में “बीफ कांड” पर अपना रूख देश और कांग्रेसी कार्यकर्त्ताओं को दिखा चुके हैं। बाढ़ के बाद केदानाथ में हुई तबाही का जायजा लेने के बाद राहुल ने देवभूमि में तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत को विशेष निर्देश दिए थे। उसके बाद ताबड़तोड़ तरीके मंदिर का पुनर्निमाण कार्य चला। इस दौरान कांग्रेस उपाध्यक्ष के “यस-मैन” बनकर सूबे में हार के बाद भी उनसे करीबी बनाने में रावत कामयाब रहे, जिसका असर आज भी दिखता है। योगी की ताबड़तोड फैसलों पर राहुल की आक्रामक शैली कितनी भारी पड़ेगी, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा। मगर एक बार साफ है कि भाजपा के हिन्दुत्व एजेंडे को राहुल अपने हिन्दुत्व की लाइन से तोड़ने के लिए कमर जरूर कस चुके हैं और इसकी आहट अभी से राजनीतिक हलकों में चर्चा का विषय बन चुकी है।

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