अखिलेश अखिल: सरकार के कथनानुसार जब देश में सब कुछ ठीक ही है और चारो तरफ चकाचक है तो फिर रुदाली कैसी ? बेबसी और बेकारी कैसी ? या तो बेबस लोग ढोंग रचकर सरकार को बदनाम करते नजर आते हैं या फिर सरकार की झमाझम और चकाचक की बात बेकार और ठगी से प्रेरित है। यह तो सबको पता है कि दर्शन देने से किसी का पेट नहीं भरता और ना ही धर्म जाति के नाम पर मानव और देश कल्याण संभव है। जिसके पेट में अनाज ना हो उसके सामने विकास की सारी गाथा बेकार और निरर्थक ही तो है। ऐसे में सच क्या है ? सत्ताधारी दलों पर विपक्ष के हमले होते रहते हैं लेकिन कभी कभी सत्य भी सरकार को झकझोड़ने लगता है। सत्य यही है कि देश बेकारी के महासंकट से गुजर रहा है और देश के आम लोगों की जिंदगी बद से बदतर होती जा रही है। आम जनता की इसी हालत को लेकर और रोजगार में लगातार हो रही कटौती के मसले पर कांग्रेस ने वित्त मंत्री अरुण जेटली पर बड़ा हमला बोला है। पार्टी ने वित्त मंत्री जेटली के नाम लिखे एक पत्र में कहा है कि, आपके वित्त मंत्री रहते डेढ़ साल में 1.6 करोड़ लोगों की नौकरियां चली गई। सरकार के ही लेबर ब्यूरो के आंकड़ों के हवाले से कांग्रेस का कहना है कि आपके नोटबंदी के फैसले से 15 लाख लोगों का रोजगार समाप्त हुआ। कांग्रेस ने जेटली से पूछा है कि सरकार में वित्त मंत्री की कुर्सी पर बैठना कैसा लगता है जिनके निर्णय ने देश में रोजगार का संकट पैदा कर दिया हो। कांग्रेस का कहना है कि यह चौंकाने वाली बात है कि आपकी सरकार ने रोजगार पर सर्वे करना बंद कर दिया है। आपके पास उपभोग से जुड़े आंकड़े क्यूं नहीं हैं। क्यों नीति आयोग गरीबी का आंकलन नहीं कर रहा है। कोंग्रेस ने लिखा है कि मैन्युफैक्चरिंग 9 साल के निचले स्तर पर आ गई। जब निर्यात 20 महीनों से ज्यादा तक गिरता रहा और जब बढ़ती ब्याज दरों के चलते निवेश नहीं बढ़ पाया। गौरतलब है कि कुछ दिन पहले नीति आयोग के उपाध्यक्ष पनगढ़िया ने इस्तीफा दे दिया था। इससे पहले पनगढ़िया ने चीन की तर्ज पर तटीय आर्थिक क्षेत्र (सीईजेड) की योजना बनाई लेकिन इसे सरकार की मंजूरी नहीं मिल पाई। हालांकि उन्होंने इस पर शुरूआती काम किया लेकिन कर विभागों और रियायतों पर वित्त मंत्रालय से ज्यादा समर्थन नहीं मिला। पनगढ़िया से सरकार के रिश्ते बिगड़ने का एक कारण यह भी था कि सरकार के लेबर लॉ में सुधार और कठोर परिश्रम के बावजूद चमड़े, जेम्स और गहने जैसे क्षेत्रों नौकरिया नहीं बन पायी। जबकि सरकार को इससे बड़ी उम्मीद थी। साथ ही साथ गरीबी जनगणना रिपोर्ट भी इस दौरान अधूरी रही। वे अत्यधिक जटिल नौकरशाही के कारण बातचीत नहीं कर सके जो कि भारत की प्रशासनिक व्यवस्था को नियंत्रित करते हैं। रोजगार के सवाल पर सब मौन हैं। सरकार के लोग अपने अपने तरह से रोजगार निर्माण की बातें भी कर रहे हैं लेकिन सच यह नहीं है। नोटबंदी के बाद रोजगार का अकाल सा हो गया है। समय रहते रोजगार निर्माण के प्रयास नहीं किये गए तो देश में व्यापक असंतोष के बाद सरकार विरोधी गतिविधियां आम जनता के द्वारा शुरू हो जायेगी। सरकार से जनता का विश्वास खत्म हो जाएगा। और जब जनता का विश्वास खत्म हो जाता है तो देश को बबार्दी से कौन रोक सकता है।