रितेश सिन्हा, स्वराज ब्यूरो | कांग्रेस संगठन में जबर्दस्त बदलाव के संकेत साफ़ नज़र आ रहे हैं। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी पर महामहिम और राजनीति के चाणक्य प्रणव मुखर्जी की प्यार भरे फटकार का असर दिखने लगा है। पिछले दिनों राष्ट्रपति भवन में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के जीवन पर आधारित पुस्तक विमोचन में उन्होंने इशारों ही इशारों में राहुल को इंदिरा की कार्यशैली का अनुसरण करने की सलाह दी। राहुल गांधी पुराने कांग्रेसी और गांधी परिवार के सबसे बड़े हितैषी प्रणव मुखर्जी की बातों को टिपण्णी को सुना और समझने का प्रयास किया। प्रणब दा ने किताब विमोचन का भरपूर लाभ उठाया और कांग्रेस की लगातार गिरती साख, कमजोर रणनीति से आहत होकर कांग्रेस के पुराने वफादार ने पार्टी को मजबूत करने की सलाह दी। इसी कसक और ठनक उनके भाषणों में साफ झलक रही थी। राहुल ने न केवल उनकी बातों को संजीदगी से सुना, बल्कि उस पर अमल करना शुरू कर भी दिया है। कांग्रेस उपाध्यक्ष ने मध्य प्रदेश, हरियाणा, छत्तीसगढ़, झारखंड और महाराष्ट्र के प्रदेश अध्यक्षों को बदलने का मन बना लिया है। बिहार अभी विवादग्रस्त है, इसलिए उस पर फैसला कुछ दिनों के लिए टाल दिया गया है। हरियाणा में पूर्व केंद्रीय मंत्री और राज्यसभा सांसद कुमारी शैलजा और कर्नाटक में नेता सदन में प्रतिपक्ष मलिकार्जुन खड़गे जैसे वरिष्ठ नेताओं को कमान सौंप कर अपने घर को बचाए रखना चाह रही है। वहीं मध्य प्रदेश में धनभाव से जूझ रही कांग्रेस धन-बल से मजबूत कमलनाथ को अध्यक्ष पद सौंपने के लिए तैयार दिखती है। कमलनाथ प्रदेश अध्यक्ष बनने के साथ प्रभारी को बदलना चाहते हैं। कमलनाथ के समर्थकों का मानना है कि मोहन प्रकाश मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र दोनों राज्यों के प्रभारी हैं और इन दोनों राज्यों में कांग्रेस की दुर्गति से शायद ही कोई वाकिफ न हो। इन नेताओं का मानना है कि मोहन प्रकाश ने दोनों राज्यों में कांग्रेस को बर्बादी की ओर धकेलने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। इन नेताओं ने कांग्रेस मुख्यालय में मोहन प्रकाश और मध्यप्रदेश के एक और कद्दावर नेता अरूण यादव के मुर्दाबाद के नारे भी लगाए। इन नेताओं का गुस्सा देखकर पार्टी के नेता तक भौचक्क थे। मगर ऐसा नहीं है कि मोहन प्रकाश की पहली बार फजीहत हुई हो। वे बार-बार अपने करतूतों की वजह से सार्वजनिक तौर पर फजीहत के शिकार होते रहे हैं। पार्टी के कुछ नेता मानते हैं कि उनकी कारगुजारियों की लंबी फेहरिस्त है, उन पर चुनाव के दौरान टिकट बेचने तक का आरोप लगा, जिसके बाद उनका सार्वजनिक तौर पर बहिष्कार किया गया। नागपुर में कांग्रेसियों ने तो उन्हें मूत्र तक पिलाने की कोशिश की थी, येन-केन प्रकारेण वे वहां से बच निकलने में कामयाब हो गए, मगर उनका गुस्सा सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हान पर फूटा और आम कार्यकत्र्ताओं ने उनका मुंह तक कालिख से पोत दिया था। वैसे कमलनाथ और मोहन प्रकाश में कभी नहीं बनी। यही वजह है कि आलाकमान से ग्रीन सिग्नल मिलते ही कमलनाथ ने अपने हाथ दिखाने शुरू कर दिए हैं। मोहन प्रकाश की कार्यशैली से नाराज कमलनाथ खेमा हर जगह हुटिंग करने के मूड में दिख रहा है और पार्टी मुख्यालय में उनके खिलाफ जबर्दस्त नारेबाजी इसी राजनीतिक जंग का परिणाम कहा जा सकता है। इन नाराज नेताओं का कहना था कि केवल व्हाट्स अप के जरिए संगठन चुनाव के पूर्व कई ब्लाॅक अध्यक्ष बदल दिए गए हैं। इन नेताओं का आरोप था कि जब इस मामले में मोहन प्रकाश से उन लोगों ने मिलने का प्रयास किया तो घंटों इंतजार के बाद वे नहीं मिले। उसके बाद इन नेताओं के विरोधी सुर नारेबाजी में बदल गई। इसके अलावा मध्य प्रदेश के दूसरे नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया को सदन में उपनेता बनाने की बात भी जोरों पर है। सिंधिया विगत कई महीनों से शिवराज विरोधी मुहिम में लगे हुए हैं और उनके नजदीकी लोगों को लगता है कि अगर सिंधिया को मध्य प्रदेश में बतौर सीएम कैंडिडेट घोषित कर दिया जाए तो कांग्रेस वापसी कर सकती है। देखा जाए तो न तो कमलनाथ और न ही ज्योतिरादित्य सिंधिया मोहन प्रकाश को फूटे नजर सुहाते हैं, ऐसे में संगठन से उनकी बिदाई लगभग तय मानी जा रही है। वहीं झारखंड में कांग्रेस की कसौटी पर सुखदेव भगत खरे नहीं उतरे और राहुल गांधी को बेहद निराश किया। उनकी जगह राहुल अरूण उरांव, पूर्व सीएलपी नेता मनोज यादव और युवा ऊर्जावान इरफान अंसारी में से किसी एक को प्रदेश अध्यक्ष की बागडोर सौंप सकते हैं। हरियाणा प्रदेश अध्यक्ष व पूर्व सांसद अशोक तंवर को राष्ट्रीय संगठन में जगह मिल सकती है। दरअसल हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और अशोक तंवर में बनती नहीं है। हुड्डा खेमा अशोक तंवर के साथ-साथ कांग्रेस विधायक दल की नेता किरण चैधरी को भी हटाने के पक्ष में है। तंवर को अनुसूचित जाति का चेयरमैन बनाया जा सकता है। वर्तमान में आंध्र प्रदेश के पूर्व आईएस अधिकारी के‐ राजू इस पद को संभाल रहे हैं। राजू ने यूपीए काल में बनाई गई कई योजना के सूत्रधार रह चुके हैं। इनमें खाद्य सुरक्षा बिल, प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना जैसी महत्वपूर्ण विधेयक प्रमुख हैं। उनकी छवि ईमानदार रही है और वे राहुल के करीबी लोगों में हैं। राजू को उनकी वफादारी का इनाम मिल सकता है और राहुल के राजनीतिक सलाहकार के रूप में उन्हें नया पद दिया जा सकता है। सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल का कद भी कम होने के संकेत दिखाई दे रहे हैं। इसके अलावा जिन पर गाज गिर सकती है उनमें मुकुल वासनिक, मोहन प्रकाश के नाम संभावित लोगों में शामिल हैं। राहुल की ताबड़तोड़ पार्टी नेताओं से हो रही बैठकें किसी बड़े परिवर्तन का संकेत दे रही हैं। देखना है कि राहुल अपनी नई टीम कब तक बनाने में कामयाब हो पाते हैं।